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आचार्य आयुर्वेदा

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Hemant Kumar Jan 29, 2025

शिलाजीत के गुण

शिलाजीत के गुण

शिलाजीत में स्नेह और लवण गुण होने से वातघ्न, सर गुण होने से पित्तघ्न, तीक्ष्ण, गुण होने से श्लेष्मघ्न और मेदोघ्न, चरपरी और तोक्षण गुण के हेतु से दीपन, कड़वा रस होने से रक्त विकार नाशक तथा चरपरा, तीक्ष्ण और उष्ण गुण होने से कृमिघ्न है। शिलाजीत स्निग्ध होने से पौष्टिक  , बल्य, आयुवर्द्धक, वृष्य, विषनाशक मंगल (रसायन) और अमृत रूप (सत्तवर्धक) गुणों की प्राप्ति कराती हैं। शुद्ध शिलाजीत स्तोत्रस  , धातु, इन्द्रिय और बुद्धि की शोधक और वर्णकर गुणयुक्त और वृष्य होने से मेध्य भी होती है। 

भगवान् आत्रेय के मतानुसार शिलाजीत अनम्ल (खट्टी नहीं है) कसैली तथा विपाक में चरपरी है, अति उष्ण या अति शीतल नहीं है। यह रसायन, वृष्य और सम्पूर्ण रोगों की नाशक है। रोग शमनार्थ आवश्यकतानुसार वातघ्न  , पित्तघ्न, कफघ्न, द्विदोषघ्न या त्रिदोषण्न औषधियों के क्वाथ की भावना देने से परम वीर्योत्कर्ष को पाती है। 

महर्षि आत्रेय कहते हैं कि- 

न सोअस्ति रोगों भुवि साध्यरूप: शिलाह्यं यन्न जयेत् प्रसड्डा। 

अर्थात् 

संसार में रसादि धातु की विकृति जनित ऐसा एक भी रोग नहीं है, जो शिलाजीत के विधिपूर्वक सेवन से नष्ट न हो सके।

 भगवान् धन्वन्तरिजी कहते हैं, कि सब प्रकार की शिलाजीत कड़वी, चरपरी, कुछ कषाय रसयुक्त, सर (बात और मल-प्रवर्त्तक या सर्वत्र पहुँच जाने वाली), विपाक में चरपरी  , उष्णवीर्य, कफ और मेद का शोषण करने और मल का छेदन करने वाली हैं। शिलाजीत के सेवन से प्रमेह  , कुष्ट   , अपस्मार, उन्माद, श्लीपद, कृत्रिम विष, शोष (क्षय), शोध, अर्श, गुल्म, पाण्डु और विषमज्वर आदि रोग थोड़े ही समय में दूर हो   जाते हैं। ऐसा कोई रोग नहीं है, जिसे शिलाजीत हनन न कर सके। बहुतकाल से मूत्र में आने वाली शर्करा (कंकड़ी) और पथरी का भेदन करके उसे बाहर निकाल देती है। 

रसरत्न समुच्चयकार ने लिखा है कि, शुद्ध शिलाजीत के सेवन से ज्वर, पाण्डु, शोथ, मधुमेह, सब   प्रकार के प्रमेह, अग्निमान्ध्, मेदवृद्धि राजयक्ष्मा, अर्श रोग, गुल्म, प्लीहावृद्धि  , सब प्रकार के उदररोग, हृदयशूल और सब प्रकार के त्वचा के रोग, ये सब निश्चयपूर्वक जड़मूल में नष्ट  हो    जाते हैं। अधिक कहां तक कहें, देह को नीरोग और सुदृद बनाने के लिये शिलाजीत सर्वोत्तम रसायन है। अभ्रकादि महारस, गन्धक आदि उपरस, सतेन्द्र (पारद), माणिक्य आदि रत्न और सुवर्ण आदि धातुओं में जरा, मृत्यु रोग समुदाय को जीतने के गुण हैं, वे सब गुण शिलाजीत   में भी होने का निम्न श्लोक में कहा है- 

रसोपरस-सूतेन्द्र रत्न-लौहेषु ये गुणाः। 

वसन्ति ते शिलाधातौ जरा-मृत्यु-जिगीषया ।। 

सब प्रकार के जीर्ण दुःखदायी रोग, मेदोवृद्धि और मधुमेह के लिये शिलाजीत को अति हितकर माना है। इनके अतिरिक्त चोट लगने पर शिलाजीत का लेप भी किया जाता है। शिलाजीत के सेवन से अकाल मृत्यु का भय दूर होता है और आयु की वृद्धि होती है। यह बालक, युवा, वृद्ध, स्त्री, पुरुष, सबके लिये लाभदायक है।

डिस्क्लेमर: इस ब्लॉग में दी गई जानकारी केवल सामान्य सूचना के उद्देश्य से है और यह चिकित्सा सलाह का विकल्प नहीं है। शिलाजीत या किसी अन्य आयुर्वेदिक औषधि का सेवन करने से पहले कृपया किसी योग्य चिकित्सक या आयुर्वेदिक विशेषज्ञ से परामर्श करें। हर व्यक्ति का शारीरिक स्वास्थ्य और प्रतिक्रिया अलग हो सकती है, इसलिए किसी भी औषधि का सेवन अपने डॉक्टर की सलाह के बिना न करें। इस ब्लॉग में दिए गए लाभों और गुणों के बारे में जानकारी पारंपरिक आयुर्वेदिक  पर आधारित है और इनका प्रभाव प्रत्येक व्यक्ति पर भिन्न हो सकता है।

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