भूमिदेश का वर्णन —–
भूमिदेश तीन प्रकार का कहा गया है-
१. जांगल देश; यहां हवा अधिक चलती है,
२. आनूप देश; इस देश में कफदोष की प्रधानता रहती है और
३. साधारण देश; इस देश में वात आदि तीनों दोष समान अवस्था में रहते हैं ।। २३ ।।
१. जाङ्गल देश- रूखा सूखा मरुस्थल जैसे—भारत का बीकानेर तथा जैसलमेर क्षेत्र तथा बाहरी प्रदेश अरब, अफ्रीका आदि। प्रायः ये जल तथा वृक्षरहित देश हैं। यहाँ पितज, रक्तज एवं वातज रोग अधिक होते हैं।
२. आनूप देश- विपुल जल तथा पर्वतों से युक्त देश; जैसे—आसाम, ब्रह्मा तथा बंगाल की खाड़ी, नदी-नालों से व्याप्त भू-प्रदेश। यहाँ कफज तथा वातज रोग अधिक होते हैं।
३. साधारण देश– इसमें वात आदि सभी दोष सम रहते हैं, अतएव यहाँ अधिकांश रोग नहीं होते फलतः यहां के निवासी अन्य देशवासियों की अपेक्षा स्वस्थ, सुन्दर, सुडौल शरीर वाले तथा नीरोग रहते। हैं; जैसे- उत्तरप्रदेश, पंजाब आदि के निवासी।
#आयुर्वेद #अष्टांगह्र्दय #सूत्रस्थानम पृष्ठ- १९
जाङ्गल देश में रहने वाले लोगों को पित्तज, रक्तज एवं वातज रोग अधिक होते हैं। इसमें प्राणवाहिनी नाड़ी की संतुलित धारणा रहती है, जिससे वातज रोगों का अधिक प्रभाव होता है। इस देश के निवासियों को प्रथम चरण में वातज रोग के लक्षण और उपाय का ज्ञान होना चाहिए। आयुर्वेद में वातज रोगों के उपचार के लिए विभिन्न आयुर्वेदिक औषधियों का उपयोग किया जाता है, जैसे की त्रिकटु चूर्ण, महायोगराज गुग्गुलु, रसनादी चूर्ण आदि। इसके अलावा, प्रतिदिन के जीवन में वातज रोगों को दूर रखने के लिए आहार और जीवनशैली में भी परिवर्तन करना चाहिए।
आनूप देश में रहने वाले लोगों को कफज तथा वातज रोग अधिक होते हैं। इसमें प्राणवाहिनी नाड़ी की अधिकता होती है, जिससे कफज रोगों का अधिक प्रभाव होता है। आयुर्वेद में कफज रोगों के उपचार के लिए कई प्रकार की हर्बल औषधियों का प्रयोग किया जाता है, जैसे की त्रिकटु चूर्ण, कफकुण्डल कल्प, कफकुण्डल रस आदि। इसके अलावा, नियमित व्यायाम, सही आहार और प्राणायाम का अभ्यास करने से इसे नियंत्रित किया जा सकता है।
साधारण देश में रहने वाले लोगों को वात, पित्त और कफ तीनों दोष समान अवस्था में होते हैं, इसलिए यहाँ अधिकांश रोग नहीं होते। ये लोग स्वस्थ, सुन्दर, सुडौल शरीर वाले होते हैं। आयुर्वेद में इस देश में रहने वाले लोगों को स्वस्थ रहने के लिए सामान्य उपचार और सावधानियां बताई जाती हैं, जैसे की स्वस्थ आहार, नियमित व्यायाम, नियमित निद्रा आदि।
नोट: लेख का उद्देश्य आयुर्वेद का प्रचार मात्र है|