व्यायाम का निषेध–वातज तथा पित्तज रोगों से पीड़ित रोगी, बालक, वृद्ध तथा अजीर्णरोग से पीड़ित मनुष्य 'व्यायाम' न करें।
वातपित्तामयी बालो वृद्धोऽजीर्णी च तं त्यजेत् ।
वक्तव्य —
यहाँ बालक तथा वृद्ध के लिए व्यायाम करने का निषेध किया है, अतः इनकी आयुसीमा का निर्देश करते हुए वाग्भट के टीकाकार श्री अरुणदत्त कहते हैं-
'बाल: आषोडशवर्षात्', 'वृद्धः सप्ततेरूर्ध्वम्'
अर्थात्
सोलह वर्ष तक की अवस्था वाला बालक कहा जाता है और सत्तर वर्ष से ऊपर की अवस्था वाला वृद्ध होता है।
*व्यायाम का निषेध: आयुर्वेदिक परामर्श*
आयुर्वेद में व्यायाम का महत्व बताया गया है, लेकिन कुछ विशेष स्थितियों में व्यायाम करने से बचने की सलाह दी जाती है। वात और पित्त विकार से पीड़ित रोगी, बच्चे, वृद्ध, और अजीर्ण रोग से पीड़ित व्यक्तियों को व्यायाम से बचने की सलाह दी जाती है। आयुर्वेद के आधार पर, व्यायाम की आयुसीमा निम्नलिखित है:
1. *बालकों के लिए:* आषोडश वर्ष के बाद तक
2. *वृद्धों के लिए:* सत्तर वर्ष या उससे अधिक उम्र में
इन स्थितियों में, व्यायाम से बचें और अन्य स्वस्थ्य उपायों का पालन करें।
*आयुर्वेद अष्टांगह्र्दय:*
*Avoidance of Exercise: Ayurvedic Advice*
In Ayurveda, the importance of exercise is emphasized, but certain conditions warrant avoiding exercise. Patients suffering from Vata and Pitta disorders, children, elderly individuals, and those with digestive issues are advised to refrain from exercising. According to Ayurvedic principles, the recommended age limits for exercise are as follows:
1. *For Children:* Up to the age of sixteen.
2. *For the Elderly:* Seventy years or older.
In these circumstances, it is advisable to avoid exercise and adhere to other healthy practices.
*Ayurveda Astangahrdaya:*
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