चक्षुस्तेजोमयं तस्य विशेषात् श्लेष्मतो भयम् ॥ ५ ॥
योजयेत्सप्तरात्रेऽस्मात् सावणार्थ रसाञ्जनम् ।
रसाज्जन प्रयोगविधि—–स्रावण अंजन का प्रयोग चक्षु (आँख) तेजोमय अर्थात् अग्निगुण प्रधान अवयव है। उसे (चक्षु को) विशेष करके शीतगुण-प्रधान कफ का भय रहता है। अतएव आँख से कफदोष को निकालने के लिए सप्ताह में एक बार रसाञ्जन का प्रयोग अवश्य करना चाहिए ॥ ५ ॥
वक्तव्य-
उक्त रसाअंजन के साप्ताहिक प्रयोग से आँखों में से संचित कफदोष निकल जाता है, अतः कफदोषजनित कोई भी नेत्ररोग नहीं हो पाता। विशेष करके काच (मोतियाबिन्द ) रोग का भय नहीं रहता है। सुश्रुत ने 'काच' रोग को 'नीलिका' तथा 'लिंगनाश' भी कहा है। देखें सु.उ. ७।१८।
'काच' को सफेद मोतिया और 'नीलिका' को नीला या काला मोतिया भी कहते हैं। यह कफदोष आँख में संचित होते-होते मोती जैसा दिखलायी देता है, तब इसे मोतियाबिन्द कहते हैं।
आपरेशन करके निकालने के बाद यह आकार में मसूर की दाल जैसा होता है। चरक ने उक्त स्रावणांजन का प्रयोग प्रतिदिन या पाँचवें अथवा आठवें दिन करने की सलाह दी है। चरक ने अंजन प्रयोग का समय रात्रि में बतलाया है। यहाँ यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि जब प्रतिदिन लगाये जाने वाले अंजन को छोड़कर प्रातः काल रसाञ्जन का प्रयोग किया जायेगा तब प्रतिदिन लगाये जाने वाले अंजन को रात में लगाना चाहिए, यह चरक के वचन का अभिप्राय है।
इसी प्रसंग में मनु ने कहा है-
मैत्रं प्रसाधनं स्नानं दन्तधावनमञ्जनम् ।
पूर्वाह्न एव कुर्वीत देवतानाञ्च पूजनम्' || ( मनु०४/१५२)
यहाँ 'मैत्र' का अर्थ है सूर्य की आराधना, उपासना या पूजा। इसलिए रसवत अथवा किसी ग्रावण अंजन का प्रयोग सदा करता रहे।
साभार: आयुर्वेद की महत्वपूर्ण पुस्तक अष्टांगह्रदय पृष्ठ-२८
आयुर्वेद, रसाञ्जन, आँखों की स्वस्थता, अग्निगुण, कफदोष, नेत्ररोग, काच (मोतियाबिन्द), रात्रि, सूर्य की आराधना, उपासना, पूजा।
The eye, being predominantly composed of the fire element, is susceptible to excess phlegm. Therefore, to alleviate the fear of phlegm-related disorders, eye salve should be applied once a week.
Statement: By using the aforementioned eye salve weekly, accumulated phlegm in the eyes is removed, preventing the occurrence of any phlegm-related eye disorders. Specifically, the fear of conditions like 'Kacha' (cataract) is reduced. Sushruta has also referred to 'Kacha' as 'Neelika' and 'Linganasha.' See Sushruta Samhita 7.18. 'Kacha' is referred to as white cataract and 'Neelika' as blue or black cataract. Phlegm, when accumulated in the eyes, gives the appearance of pearls, hence termed 'Motiyabindu' (cataract). After surgical removal, it resembles the shape of lentils. Charaka advises using this eye salve daily, or on the fifth or eighth day. Charaka recommends applying eye salve at night. It is important to note that when applying the salve in the morning, leaving out the daily eye salve, it should be applied at night, as per Charaka's advice.
In this context, Manu has said: "Maintain friendship, perform bathing, and clean teeth in the morning, and worship the deities." (Manu 4.152) Here, 'friendship' refers to the worship, adoration, or prayer of the sun. Therefore, always use eye salve or any eye ointment.
Reference: Important book of Ayurveda, Ashtanga Hridaya, Page 28
Ayurveda, eye salve, eye health, fire element, phlegm accumulation, eye disorders, cataract, night, worship of the sun, worship, prayer.
Disclaimer: This article is for informational purposes only and is not intended to replace professional medical advice. Always consult with a qualified healthcare practitioner before starting any new herbal supplement or treatment regimen.