गुरुमन्दहिमस्निग्धश्लक्ष्णसान्द्रमृदुस्थिराः ।
गुणाः ससूक्ष्मविशदा विंशतिः सविपर्ययाः ।। १८ ।।
द्रव्य के गुणों का विवरण---
द्रव्यों में परस्पर विपरीत ये 20 गुण पाये जाते हैं-
(अर्थ सहित)
१. गुरु = भारी
२. लघु = हलका
३. मन्द = चिरकारी
४. तीक्ष्ण = तीखा
५. शीत = शीतल
६. उष्ण = गरम
७. स्निग्ध = चिकना
८. रूक्ष = रूखा
९. लक्ष्ण = साफ
१०. खर = खुरदरा
११. सान्द्र = गाढा
१२. द्रव = पतला
१३. मृदु = कोमल
१४. कठिन = कठोर
१५. स्थिर = अचल
१६. सर = चल
१७. सूक्ष्म = बारीक
१८. स्थूल = मोटा
१९. विशद = टूटने वाला
२०. पिच्छिल = लसीला
वक्तव्य — अ.हृ.नि. ६।१ में मद्य के १० गुण और इनके विपरीत १० ओजस के जो गुण गिनाये हैं, वे भी ये ही २० गुण हैं। चरक ने दूध के दस गुण गिनाकर यह बतलाया है कि जो गुण दूध के कहे गये हैं वे गुण ओजस् के भी हैं, अतएव दूध को पीने से ओजोगुण की वृद्धि होती है।
चरक ने जो दिव्य जल के ६ गुणों का वर्णन च.सू. २७/१९८ में किया है, यदि हम इन्हें मानते हैं तो फिर गुणों की संख्या २० हो कैसे मानी जा सकती है?
इसका समाधान इस प्रकार है- ये जो ६ अतिरिक्त गुणों का वर्णन यहाँ किया गया है, इनका अन्तर्भाव उक्त २० गुणों में ही कर लिया जाता है।
ध्यान दें-व्यवायि, विकाशी, आशुकारी ये गुण मद्य में कहे गये हैं और 'प्रसन्न' नामक गुण दूध में। फिर यह भी कहा गया है कि मद्य के गुणों से विपरीत गुण ओजस में होते हैं। साथ ही फिर यह भी कहा गया है कि जो गुण ओजस् में होते हैं वे ही गुण दूध में होते हैं। इन विषयों का समन्वय इस प्रकार किया गया है—व्यवायी गुण का अन्तर्भाव द्रव गुण में, विकाशी का खर में, आशुकारी का चल में और प्रसन्न का स्थूल में। इनका समर्थन चरक तथा सुश्रुत के वचनों द्वारा प्राप्त है।
#आयुर्वेद #अष्टांगह्र्दय #सूत्रस्थानम पृष्ठ:- १५